यदि ऐसा होता
उपालंभ तुम देते रहे
हर बार उन्हें वह सहती रही
जब दुःख हद से पार हुआ
उसका जीना दुश्वार हुआ
कुछ अधिक सहा और सह न सकी
उसका मन बहुत अशांत हुआ
पानी जब सिर से गुजर गया
उसने सब पीछे छोड़ दिया
निराशा मन में घर करने लगी
जीने का मोह भंग हुआ
अपनी खुशियाँ अपने सुख दुःख
मुट्ठी में बंद किये सब कुछ
अरमानों की बलिवेदी पर
खुद की बली चढ़ा बैठी
जीते जी खुद को मिटा बैठी
दो शब्द प्यार के बोले होते
दिल के रहस्य खोले होते
जीवन में इतनी कटुता ना होती
वह हद को पार नहीं करती
सदा तुम्हारी ही रहती |
आशा
आशा
3 comments:
आदरणीया आशा जी अभिवादन सच में ये प्यार के दो बोल बहुत वजन रखते हैं प्रेम बढ़ता है प्राण आता है कटुता ख़त्म होती है ...बहुत सुन्दर ..
काश लोग इस का ध्यान रखें
आभार
भ्रमर ५
सुन्दर...
सुमित जी धन्यवाद और आभार रचना को प्रोत्साहन देने के लिए
भ्रमर ५
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