AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Sunday 2 September 2012

अनुभूति

तुम्हारे मेरे बीच कुछ तो ऐसा है
जो हम एक डोर से बँधे हैं
क्या है वह कभी सोचा है ?
अहसास स्नेह का ममता का
या अटूट विश्वास
जिससे हम बँधे हैं |
साँसों की गिनती यदि करना चाहें
जीवन हर पल क्षय होता है
पर फिर भी अटूट विश्वास
लाता करीब हम दोनों को
हर पल यह भाव उभरता है
अहसास स्नेह का पलता है
पर बढ़ता स्नेह
अटूट विश्वास पर ही तो पलता है |
कभी सफलता हाथ आई
कभी निराशा रंग लाई
जीवन के उतार चढ़ावों को
हर रोज सहन किया हमने
इस पर भी यह अहसास उभरता है
जीवन जीने का अंदाज यही होता है |
तुम्हारे मेरे बीच कोई तो ऐसा है
जो हमें बहुत गहराई से
अपने में सहेजता है
और इस बंधन को
कुछ अधिक प्रगाढ़ बनाता है |
कई राज खुले अनजाने में
मन चाही बातों तक आने में
फिर भी न कोई अपघात हुआ
और अधिक अपनेपन का
अहसास पास खींच लाया |
बीते दिन पीछे छूट गए
नये आयाम चुने हमने
अलग विचार भिन्न आदतें
व रहने का अंदाज जुदा
फिर भी हम एक डोर से बँधे हैं
सफल जीवन की इक मिसाल बने हैं
और अधिक विश्वास से भरे हैं
यदि होता आकलन जीवन का
हम परवान चढ़े हैं
तुम में कुछ तो ऐसा है
जो हम एक डोर से बँधे है |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

5 comments:

Asha Lata Saxena said...

टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी |
आशा

दिगम्बर नासवा said...

विश्वास की डोर बंधी रहनी चाहिए ... ऐसा प्रयास जरूरी है इस कच्चे धागे को बनाए रखने के लिए ...

Kailash Sharma said...

यह विश्वास की डोर सदा बंधी रहे...बहुत कोमल अहसास..

Asha Lata Saxena said...

कैलाश जी और दिगंबर जी कविता पसंद आई इस हेतु
शुभ कामनाएं|
आशा

Kulwant Happy said...

Nice..