सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
अपनी इस रचना में मैंने अपने आस पास के जीवन से उद्धृत दो विभिन्न प्रकार
के दृश्यों को चित्रित करने का प्रयास किया है ! ये दृश्य हम प्रतिदिन
देखते हैं और शायद इतना अधिक देखते हैं कि इनके प्रति हमारी संवेदनाएं
बिलकुल मर चुकी हैं ! लेकिन आज भी जब इतने विपरीत विभावों को दर्शाती ऐसी
तस्वीरें मेरे सामने आती हैं मेरा मन दुःख से भर जाता है ! समाज में
व्याप्त इस असमानता और विसंगति को मिटाने के लिये क्या हम कुछ नहीं कर सकते
? क्या करें कि सारे बच्चे एक सा खुशहाल बचपन जी सकें खुशियों से भरपूर,
सुख सुविधा से संपन्न ! जहाँ उनके लिये एक सी अच्छी शिक्षा हो, सद्विचार
हों, अच्छे संस्कार हों, स्वस्थ वातावरण हो और सबके लिये उन्नति के सामान
अवसर हों ! क्या ऐसे समाज की परिकल्पना अपराध है ? क्या ऐसे समाज की
स्थापना के लिये हम कुछ नहीं कर सकते ? क्या ऐसे सपनों को साकार करने के
लिये किसीके पास कोई संकल्पना, सुझाव या सहयोग का दिशा निर्देश नहीं ? क्या
आपका हृदय ऐसे दृश्य देख कर विचलित नहीं होता ? इस रचना में 'उनका' शब्द
सुख सुविधा संपन्न अमीर वर्ग के लिये प्रयुक्त किया गया है !
मेरा दिल तब-तब रोता है
एक छोटा बच्चा अपने सर पर
भारी बोझा ढोता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बॉटल बस्ता होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक भूखे बच्चे का नन्हा सा
हाथ भीख को बढ़ता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बर्गर बिस्किट होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक बेघर बच्चा सर्दी में
घुटनों में सर दे सोता है
और उनके बच्चों के कमरे में
ए सी , हीटर होता है ,
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक छोटा बच्चा गुण्डों की
साजिश का मोहरा होता है
और उनका बच्चा अपने घर
महफूज़ मज़े से होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक नन्हा बच्चा बिलख-बिलख
माँ के आँचल को रोता है
और उनका बच्चा हुलस हुमक
माँ की गोदी में सोता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !
जब छोटे बच्चे के हाथों में
कूड़ा कचरा होता है
और उनके बच्चे के हाथों में
खेल खिलौना होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
बच्चों की किस्मत का अंतर
जब पल-पल बढ़ता जाता है ,
और सबकी आँखें बंद
जुबाँ पर ताला लटका होता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !
साधना वैद
मेरा दिल तब-तब रोता है
एक छोटा बच्चा अपने सर पर
भारी बोझा ढोता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बॉटल बस्ता होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक भूखे बच्चे का नन्हा सा
हाथ भीख को बढ़ता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बर्गर बिस्किट होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक बेघर बच्चा सर्दी में
घुटनों में सर दे सोता है
और उनके बच्चों के कमरे में
ए सी , हीटर होता है ,
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक छोटा बच्चा गुण्डों की
साजिश का मोहरा होता है
और उनका बच्चा अपने घर
महफूज़ मज़े से होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
एक नन्हा बच्चा बिलख-बिलख
माँ के आँचल को रोता है
और उनका बच्चा हुलस हुमक
माँ की गोदी में सोता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !
जब छोटे बच्चे के हाथों में
कूड़ा कचरा होता है
और उनके बच्चे के हाथों में
खेल खिलौना होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !
बच्चों की किस्मत का अंतर
जब पल-पल बढ़ता जाता है ,
और सबकी आँखें बंद
जुबाँ पर ताला लटका होता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !
साधना वैद
10 comments:
पर ... क्या फर्क पड़ता है , सब अपने मतलब से चल रहे - दांये बांये देखकर भी कुछ नहीं दीखता ... ऐसे में , दिल रोता है , पर क्या फर्क पड़ता है !
्सटीक शब्दों मे वास्तविकता को उकेरा है
अच्छी रचना के लिए बधाई |
आशा
मार्मिक चित्रण ....
yatharth ko chitrit karati hui kavita dil ko chhoo gayi.
मार्मिक .
विधवा जीवन पर भी कुछ लिखें और समाधान भी दें .
See
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/06/blog-post_10.html
सामाजिक बुराई को उकेरती ...कटु सत्य कहती ...बहुत सुंदर रचना ...
शुभकामनायें...
आदरणीया साधना जी मार्मिक चित्रण ..दर्द मन को छू गया ..काश हमारी सरकार भी इस विषमता को समझे ..
एक भूखे बच्चे का नन्हा सा हाथ ....भीख को बढ़ता है ....
बधाई
भ्रमर ५
आदरणीया रश्मि प्रभा जी, वंदना जी , आशा जी, संगीता जी , रेखा जी ,अनुपमा जी आप सब का बहुत बहुत आभार आप सब ने इस दर्द को महसूस किया और अपना समर्थन दिया कृपया प्रोत्साहन बनाये रखें
बधाई
भ्रमर ५
डॉ अनवर जमाल जी प्रोत्साहन के लिए आभार ...जरुर विधवा पर भी लिखा जाएगा ....
बधाई
भ्रमर ५
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