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Wednesday, 30 July 2014

रिश्ते का सत्य

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
जल में घुली चीनी की तरह
कभी एक रस ना हो पाए
साथ साथ न चल पाए
तब कैसे देदूं नाम कोई  
ऐसे अनाम रिश्ते को |
जल में मिठास आ जाती है
चीनी के चंद कणों से
होती है हकीकत दिखावा नहीं
पर स्थिति विपरीत यहाँ
रिश्ता बहुत सुदृढ़ दीखता
पर खोखला अंदर से |
दौनों में कितना अंतर है
पर जीवन का सत्य यही है
मतलब के सारे रिश्ते हैं
छलना का रूप लिए हैं |
क्षणभर के लिए बहकाते हैं
वास्तविक नजर आते हैं
तभी विचार आता है
क्या रिश्तों का सत्य यही है |
आशा

2 comments:

Unknown said...

वाह बहुत बढ़िया

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सुन्दर रचना आशा जी ...अच्छे भाव
भ्रमर ५