अतुलनीय है प्यार
तुम्हारे नेह बंध का सार
मुझ में साहस भर देता है
नहीं मानती हार
माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम |
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ
जैसी हूँ ,तुमसे ही हूँ मैं
मुझे यही हुआ अहसास
माँ तुझे मेरा प्रणाम |
तुमने मुझ में कूट- कूट कर
भरा आत्म विश्वास
माँ मेरा तुझे शत-शत प्रणाम |
न कोई वस्तु मुझे लुभाती
कभी किसी से ना भय खाती
रहती सदा ससम्मान
माँ मेरा तुझे हर क्षण प्रणाम !
तुम्हारे नेह बंध का सार
मुझ में साहस भर देता है
नहीं मानती हार
माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम |
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ
जैसी हूँ ,तुमसे ही हूँ मैं
मुझे यही हुआ अहसास
माँ तुझे मेरा प्रणाम |
तुमने मुझ में कूट- कूट कर
भरा आत्म विश्वास
माँ मेरा तुझे शत-शत प्रणाम |
न कोई वस्तु मुझे लुभाती
कभी किसी से ना भय खाती
रहती सदा ससम्मान
माँ मेरा तुझे हर क्षण प्रणाम !
5 comments:
वाह बहुत सुंदर ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यारा सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी सूचना हेतु आभार सर |
आदरणीया आशा जी बहुत प्यारी रचना .माँ का प्रेम तो अनमोल है .हर माँ को नमन ...बधाई
भ्रमर ५
टिप्पणी हेतु आभार सर |
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