वेदना की टीस को पहचानते हैं। हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। दुःख से नाता बहुत गहरा रहा, मीत इनको हम स्वयं का मानते हैं। हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। हर उजाले से अन्धेरा है बंधा, खाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं। हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। शूल के ही साथ रहते फूल हैं, बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं हम विरह में गीत गाना जानते हैं।। |
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Monday, 22 October 2012
"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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5 comments:
फूलों को गर चाहते, करो शूल से प्रीत |
विरह गीत जो गा सके, सके स्वयं को जीत ||
बहुत बढ़िया है गुरु जी ||
आदरणीय शास्त्री जी बहुत सुन्दर
दुःख से नाता बहुत गहरा रहा,
मीत इनको हम स्वयं का मानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
सटीक और सत्य है
जय श्री राधे
भ्रमर
हर उजाले से अन्धेरा है बंधा,
खाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
जीवन में "नकार "को बुहारती "सकार "को दुलराती ,सकारात्मक ऊर्जा से संसिक्त पोस्ट .बेहतरीन भाव अभिव्यंजना .
ram ram bhai
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बुधवार, 24 अक्तूबर 2012
हैलोवीन बोले तो (दूसरीऔर तीसरी क़िस्त )
http://veerubhai1947.blogspot.com/
bahut sundar prastuti
हर उजाले से अन्धेरा है बंधा,
खाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
Posted by डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) at 20:06
बहुत भावपूर्ण रचना है शास्त्री जी
शूल के ही साथ रहते फूल हैं ------हम विरह के गीत गाना जानते हैं |
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
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