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जब सींचोगे
पलूं बढूंगी
खुश हूंगी मै
तभी खिलूंगी
बांटूंगी
अधरों मुस्कान
मै तेरी पहचान बनकर
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वेदनाएं भी
हरुंगी
जीत निश्चित
मै करूंगी
कीर्ति पताका
मै फहरूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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अभिलाषाएं
पूर्ण होंगी
राह कंटक
मै चलूंगी
पाप पापी
भी दलूंगी
संगिनी हूं
संग चलूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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ज्योति देने को
जलूंगी
शान्ति हूं मैं
सुख भी दूंगी
मै जिऊंगी
औ मरूंगी
पूर्ण तुझको
मै करूंगी
सृष्टि सी
रचती रहूंगी
सर्वदा ही
मै तेरी पहचान बनकर
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ,
भारत
3 comments:
बहुत सही!
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी , प्रणाम,मेरी इस रचना को आप ने मान दिया चर्चा मंच के लिए चुना, खुशी हुई।
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ,नवरात्रि की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
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