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Friday, 31 January 2014

है कौन दोषी

01 फ़रवरी, 2011


पैर पसारे भ्रष्टाचार ने
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न  रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह  ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |

आशा
                             सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

1 comment:

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सच्चाई को उकेरती अच्छी कविता काश ये बात लोग समझें और इस दल दल में धंस कर सब तवाह न करें जय श्री राधे . आशा जी ...भ्रमर 5