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Sunday, 16 June 2013

बेटा क्या सोच रहा

आज न जाने क्यूँ बाबूजी 
उदासी धेरे मुझे 
जैसे ही पलक मूंदता 
आप समक्ष होतेमेरे
आपका हाथ सर पर 
दे रहा संबल मुझे |
हो गया कितना बदलाव 
पहले में और आज में 
तब आप अलग से थे 
जब भी सामना होता था 
भय आपसे होता  था |
पर जाने कब आपका
 व्यवहार मित्रवत हुआ
आपका अनुशासित दुलार
गहन प्रभाव छोड़ गया 
दमकता चहरा  मृदु मुस्कान लिए
दृढ निश्चय और कर्मठता का
अदभुद  प्रताप लिए
आप सा कोइ नहीं लगता|
यही पीर  मन में है
होते हुए अंश आपका 
 आप सा  क्यूं न बन पाया
चाहता समेट लूं  सब को
मैं भी अपनी बाहों में
पर भुजाओं का वह  विस्तार 
मैं कहाँ से लाऊँ
आपकी प्रशस्ति के लिए 
शब्दों की संख्या कम लगती 
माँ सरस्वती ,लक्ष्मी और काली 
तीनो का था वरद हस्त
हाथ कभी न रहे खाली |
जीवन के हर मोड़ पर
 कर्मठता ने दिया साथ 
शरीर थका पर मस्तिष्क नहीं 
दृढ़ता कम न हुई मन की 
सार्थक जीवन जिया आपने 
बने  प्रेरणा सबकी  |
सोचता हूँ मैं हर पल
 हूँ कितना भाग्यशाली 
आपकी छत्र छाया मिली 
आपने इस योग्य बनाया 
उन्नत सर मैं कर पाया
फिर भी कसक बाकी रही
आपसा क्यूं न बन पाया |
आशा

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

4 comments:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी पिता के मान सम्मान के प्रति जगाती उस जैसा या उससे आगे बढ़ने को प्रेरित करती सुन्दर रचना माँ पिता को अंत तक प्रेम और सहारा मिलता रहे ...सुन्दर
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

टिप्पणी हेतु धन्यवाद भ्रमर जी |
आशा

Satish Saxena said...

पिता को समर्पित एक सुंदर रचना के लिए आभार आपका !

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय सतीश जी सराहना हेतु आभार आशा जी की सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर भाव लिए हुए महत्वपूर्ण होती ही हैं
भ्रमर ५