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Wednesday 14 May 2014

बात पिछले साल की


बात पिछले साल की



पिछले वर्ष ना जाने क्या हुआ इन्द्र देव अचानक रूठ गए | जब गर्मी आई तो बिना पानी के बहुतसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा |पहले नल रोज आते थे , फिर ४ दिनमें एक बार और बाद में यह स्थिती हो गई की नल में टपकती पानी की एक बूंद देखने को भी तरस गए | टेंकरों से दूर दूर से पानी लाया जाता था | अन्य स्त्रोतों को भी सफाईके बाद उपयोग में लाया गया | पर फिर भी पूर्ति न हो पाई शहर से बहुत दूर के जल स्त्रोत से चैनल कटिंग कर बहुतही महंगी योजना अपना कर पानी सोने के भाव उपलब्ध हुआ | पर जैसेही स्थिति सामान्य हुई , मानसून सक्रीय हुआ हमें अखवार में पढने को मिला की इतनी मेहनत से बनाई गई चैनल को समाप्त किया जा रहा है | मै कई दिन तक सोचती रही उसको तोड़ने से क्या फायदा हुआ इतना धन उसे बनाने में लगा और फिर उसे तोड़ने में |क्या यह धन का दुरूपयोग नहीं है ? यदि उस स्त्रोत के जल का उपयोग नहीं करना था तब भी उसे यथावत रख कर फिर किसी कठिन समय के लिए सहेजा जा सकता था | क्या पता कब इसकी आवश्यकता हो जाती |पर शान को कौन समझाए , बार बार की तोडा फोड़ी सरकारी खर्च को बढ़ती है | इससे लाभ की जगह हानी ही होती है जितना सरकार खर्च करती है , उसका प्रभाव आम नागरिकपर ही तो पड़ता है |


आशा


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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 10 May 2014

माँ

Photo अतुलनीय है प्यार
तुम्हारे नेह बंध का सार
मुझ में साहस भर देता है
नहीं मानती हार
माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम |
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ
जैसी हूँ ,तुमसे ही हूँ मैं
मुझे यही हुआ अहसास
माँ तुझे मेरा प्रणाम |
तुमने मुझ में कूट- कूट कर
भरा आत्म विश्वास
माँ मेरा तुझे शत-शत प्रणाम |
न कोई वस्तु मुझे लुभाती
कभी किसी से ना भय खाती
रहती सदा ससम्मान
माँ मेरा तुझे हर क्षण प्रणाम !
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः