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Saturday 24 November 2012

परिवार की इज्ज़त -लघु कथा

 परिवार की इज्ज़त -लघु कथा  .


'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या  की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य  की आँखें  छत  पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी  कि   आदित्य ने  जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी '' भैय्या ..''.आदित्य  ने उसकी चोटी पकड़ते हुए कहा -''याद रख स्नेहा जो भाई तेरी इज्ज़त बचाने के लिए किसी और की जान ले सकता है वो ....परिवार की इज्ज़त बनाये रखने के लिए तेरी भी जान ले सकता है .'' ये कहकर आदित्य ने झटके से स्नेहा की चोटी छोड़ दी और  वहां से निकल कर घर से बाहर चला गया ..आदित्य के जाते ही दीवार पर टंगी माता-पिता की तस्वीरें देखती हुई स्नेहा वही बैठ गयी . मन ही मन सोचने लगी -''आज अगर वे जिंदा होते तो शायद मैं कुछ कर पाती ...पर भैय्या ......लेकिन अगर भैय्या  को पसंद नहीं तो मैं ...अब मयंक से नहीं मिलूंगी .''दिन का गया आदित्य जब रात के बारह बजे तक भी न लौटा तो स्नेहा का दिल घबराने लगा .राह देखते देखते उसकी आँख लग गयी .माथे  पर कुछ सटा होने के अहसास से उसकी आँख खुली तो आदित्य को सिरहाने खड़ा पाया उसके हाथ के रिवॉल्वर को अपने माथे पर लगा पाया .स्नेहा कुछ बोलती इससे पहले ही आदित्य रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा चूका था और आदित्य के कानों में गूँज रहे थे गली के कोने में खड़े लफंगों के शब्द .....''ये देखो खुद की रोज़ी-रोटी चलाने को बहन को धंधे पर लगा दिया ...अजी कौन जाने किस किस से चक्कर है ....हम ही क्या बुरे हैं...... कुछ भेंट तो हम भी चढ़ा  देते ...और ...और जोरदार ठहाके !!!
                                                                                    शिखा कौशिक 'नूतन '

                              

Friday 9 November 2012

दीपावली


टिमटिमाते तारे गगन में
अंधेरी रात अमावस की
दीपावली आई तम हरने
लाई सौगात खुशियों की |
कहीं जले माटी के दीपक
रौशन कहीं मौम बत्ती
चमकते लट्टू बिजली के
विष्णु प्रिया के इन्तजार में |
बनने लगी मावे की गुजिया
चन्द्रकला और मीठी मठरी

द्वार खुला रखा सबने
स्वागतार्थ लक्ष्मी के |
आतिशबाजी और पटाखे
हर गली मोहल्ले में
नन्ही गुडिया खुश होती
फुलझड़ी की रौशनी में |
समय देख पूजन अर्चन
करते देवी लक्ष्मी का
खील बताशे और मिठाई
होते प्रतीक घुलती मिठास की
|
दृश्य होता मनोरम
तम में होते प्रकाश का
होता मिलन दौनों का
रात्री और उजास का |
प्रकाश हर लेता तम
फैलाता सन्देश स्नेह का
चमकता दमकता घर
करता इज़हार खुशियों का |
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः