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Monday 30 April 2012

बाल श्रमिक

MAA SAB MANGAL KAREN

बाल श्रमिक

तपती धूप , दमकते  चेहरे  ,
श्रमकण जिन पर गए उकेरे ,
काले भूरे बाल सुनहरे ,
भोले भाले नन्हे चेहरे ,
जल्दी जल्दी हाथ चलाते ,
थक जाते पर रुक ना पाते ,
उस पर भी वे झिड़के जाते ,
सजल हुई आँखे , पर हँसते ,
मन के टूटे तार लरजते |

Saturday 28 April 2012

"ईश्वर " ( 1)


"ईश्वर " ( 1)
क्या निंदा या करे  प्रशंसा
जिसको तू ना जाने
कोटि-कोटि ले जन्म अरे हे !
मानव ! तू ईश्वर पहचाने !
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एक एक अणु - कण सब उसका
सब हैं उसके अंश
जगत नियंता जगदीश्वर है
वो अमोघ है, अविनाशी है, वो अनंत !
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ओउम वही है शून्य वही है
प्रकृति चराचर सरल विषम - सब
निर्गुण-सगुण ओज तेज सब
जीवन- जीव -है पवन वही !
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जल भी वो है अग्नि वही है
जल-थल उर्वर शक्ति आस है
तृष्णा - घृणा निवारक स्वामी  बुद्धि ज्ञान है
ऋषि वही है, सिद्धि वही है अर्थ वही है !
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ज्ञानी ब्रह्म रचयिता सब का विश्व-कर्म है
वो दिनेश है वो महेश है वो सुरेश है
रत्न वही है रत्नाकर है देव वही
कल्प वृक्ष है सागर है वो कामधेनु है !
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वो विराट है विभु है व्यापक वो अक्षय है
सूक्ष्म जगत है दावानल है बड़वानल है
वो ही हिम है वही हिमालय बादल है वो
अमृत गंगा मन तन सब है- जठराग्नि है
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लील सके ब्रह्माण्ड को पल में
धूल - धूसरित कर डाले
क्या मूरख  निंदा  तुम करते
जो जीवन दे तुझको पाले !
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सत्य वही है झूठ वही है नाना वर्ण रंग भेद है
उषा वही है निशा वही है अद्भुत धांधा  वो अभेद्य है
वेद उपनिषद छंद गीत  गुरु - ग्रन्थ बाइबिल  कुरान है
सुर ताल वही सूत्र वही सब कारक है संहारक है
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ऋषि वैज्ञानिक देव दनुज साधू - सन्यासी
पाल रहा - नचा रहा - लीलाधर बड़ा प्रचारक है
कृति अपनी के कृत्य देख सब - खुश भी होता
कभी कभी वो अश्रु बहाए हर पहलू का द्योतक होता  !
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ईहा – घृणा - मोह - माया संताप - काम का
अद्भुत संगम काल व्याल जंजाल जाल का
प्रेम किये है तुझको पल पल देखो प्यारे
जीवन देता कण कण तेरे सदा समाये !
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आओ नमन करें ईश्वर का - परमेश्वर का
अहम छोड़कर प्रेम त्याग से शून्य बने हम
जीवन उसके नाम करें हम मुक्त फिरें इक ज्योति बने
हर जनम जन्म में मानव बन आ मानवता को प्रेम करें !
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अपनी मूढ़ बुद्धि है जितनी -जितनी  दूर चली जाए
सारा जीवन आओ खोजें खोज - खोज जन हित में लायें
निंदा और प्रशंसा छोड़े बिन-फल इच्छा - कर्म करें
पायें या ना पायें कुछ भी उसके प्यारे हो जाएँ  !
---------------------------------------------------------------------------------------------------------सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२६.४.१२ ८.३०-९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी


MAA SAB MANGAL KAREN

Thursday 26 April 2012

हैप्पी बर्थ डे टू “सत्यम “



हैप्पी बर्थ डे टू 
सत्यम 
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मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों 
मित्र हमारे दिल हो 
मात - पिता के बहुत दुलारे 
जग के तुम दीपक हो !
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आओ अपने नन्हे कर से 
सुन्दर प्यारा जहाँ बनायें 
सूरज चंदा तारों से हम 
झिलमिल -झिलमिल इसे सजाएं !
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प्रेम की बहती अमृत धारा 
कमल गुलाब खिले चेहरे हों 


मंद मंद मुस्कान विखेरे 
हम नूर नैन के दिलों बसे हों !
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फूल खिले हों चिड़ियाँ गायें 

नाच मोर हर दिन सावन हो 

ख़ुशी रहे "तुलसी" घर आंगन 
ज्ञान का दीपक ज्योति जगी हो 
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होली दीवाली से हर दिन 
झूमें हम - मन - मिला रहे 
गुडिया गुड्डे और घरौंदे 

अपनी दुनिया सजी रहे !
  
देश के वीर सपूत बनें हम 
भारत - माँ - के लाल बनें 
शावक से जब सिंह बनें हम 
गरजें अरि के काल बनें !

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सभी बड़े- छोटे- सब मिल के 
ह्रदय लगा  - दे - दें आशीष 
सदा सहेजे --  मै रखूँगा 
नमन करूँ - तुम गुरु हो- ईश !
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कल है मेरा जन्म-दिवस- 'प्रिय'
केक काटने आ जाना 

स्नेह लुटा बबलू पप्पू बन 
लड्डू -टाफी - खा जाना 

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गुब्बारे- संग -फूल खिलेंगे
खुश्बू  होगी- कविता होगी 
भ्रमर रहेंगे मधुर गीत में 
काव्य गोष्ठी अद्भुत होगी 
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आपका स्नेहाकांक्षी 'सत्यम"
द्वारा भ्रमर-५- २६.४.२०१२ 
प्रतापगढ़ उ.प्र. 






MAA SAB MANGAL KAREN

Tuesday 24 April 2012

चार रुपइया और बढ़ा दो


चार रुपइया और बढ़ा दो
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दो रोटी के पड़े हैं लाले
भूखे-दूखे लोग भरे हैं
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बहन बेटियाँ बिन -व्याही हैं
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
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मंहगाई ना कुछ कर पाती
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
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कोई जमीं फुटपाथ पे सोया
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
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( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
विस्वा – मेंड़ जमीं की खातिर
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२




MAA SAB MANGAL KAREN

Sunday 22 April 2012

बचा लो धरती, मेरे राम-

माँ  सब  मंगल  करें ।।

बचा लो धरती, मेरे राम-

सात अरब लोगों का बोझ,  अलग दूसरी दुनिया खोज |
हुआ यहाँ का चक्का जाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 1 !
सिमटे वन घटते संसाधन, अटक गया राशन उत्पादन |
बढ़ते रहते हर  दिन  दाम, बचा लो  धरती,  मेरे  राम ! 2|


बढे  मरुस्थल  बाढ़े ताप, धरती सहती मानव पाप  |
अब भूकंपन आठों-याम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 3 !
हिमनद मिटे घटेगा पानी, कही  बवंडर की मनमानी  |
करे सुनामी काम-तमाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 4 !
 

जीव - जंतु  के  कई प्रकार, रहा प्रदूषण उनको मार  |
दोहन शोषण से कुहराम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 5 !
जहर कीटनाशक का फैले, नाले-नदी-शिखर-तट मैले | 
सूक्ष्म तरंगें भी बदनाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 6 !

मारक गैसों की भरमार, करते बम क्षण में संहार  |
 जला रहा जहरीला घाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 7 !
मानव - अंगों  का  व्यापार, सत्संगो  का सारोकार|
बिगढ़ै पावन तीरथ धाम, बचा लो धरती, मेरे राम ! 8 !

कैसे तुझे भुलाऊँ

MAA SAB MANGAL KAREN
तू यहाँ रहे या वहाँ रहे
जहां चाहे वहाँ रहे
कभी रूठी रहे
या  मान  जाए
पर बहारों का पर्याय है तू
मीठी यादों का बहाव है तू |
चेहरे की मुस्कुराहट  
अठखेलियाँ करती अदाएं
अंखियों  की कोर सजाता काजल
लगा माथे पर प्यारा सा डिठोना
किसी की नजर ना लग जाए |
तेरी नन्हीं बाहों की पकड़
कसती जाती थी
जब भी बादल गरजते थे
दामिनी दमकती थी
वर्षा की पहली फुहार
तुझे भिगोना चाहती  थी  |
आगे पीछे सारे दिन
मेरा पल्ला पकड़
इधर उधर तेरा घूमना
गोदी में आने की जिद करना
राह में हाथ फैला कर रुक जाना
बांहों  में आते ही मुस्कराना
जाने कितनी सारी बातें हैं
दिन रात मन में रहती हैं
कैसे उन्हें भुलाऊँ
तू क्या जाने
तू क्या है मेरे लिए |

चाँद भी खिसक गया


गोरी के आंचल में 
झिलमिल सितारे हैं 
चंदा को सूरज भी 
छिप के निहारे है 
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रेत के समंदर में 
बूँद एक उतरी तो 
ललचाई नजरों ने 
सोख लिया प्यारी को 
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ 
राहु -केतु से कटे भी 
दंभ लिए फिरता हूँ 
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चार दिन की जिन्दगी है 
चार पल की यारी है 
चाँद भी खिसक गया 
रात अंधियारी हैं 
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कल अंडा था 
बच्चा बनकर 
चीं चीं चूं चूं बोला 
खेला खाया 
उड़ा साथ कुछ 
मै रह गया अकेला 






MAA SAB MANGAL KAREN

Saturday 14 April 2012

नफरत


कई परतों में दबी आग
अनजाने में चिनगारी बनी
जाने कब शोले भड़के
सब जला कर राख कर गए |
फिर छोटी छोटी बातें
बदल गयी अफवाहों में
जैसे ही विस्तार पाया
वैमनस्य ने सिर उठाया |
दूरियां बढ़ने लगीं
भडकी नफ़रत की ज्वाला
यहाँ वहां इसी अलगाव का
विकृत रूप नज़र आया |
दी थी जिसने हवा
थी ताकत धन की वहाँ
वह पहले भी अप्रभावित था
बाद में बचा रहा |
गाज गिरी आम आदमी पर
वह अपने को न बचा सका
उस आग में झुलस गया
भव सागर ही छोड़ चला |
आशा

Friday 13 April 2012

छोटी -छोटी बातें


छोटी -छोटी बातें

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छोटी छोटी बातों पर

अनायास ही अनचाहे

मन मुटाव हो जाता है

दुराव हो जाता है

दूरी बढ़ जाती है

हम तिलमिला जाते हैं

मौन हो जाते हैं

अहम भाग जाता है

मन का यक्ष प्रश्न बार बार

झकझोरता है

कुरेदता है


हम बड़े हैं फले-फूले हैं

हम देते हैं पालते हैं

पोसते हैं

जाने क्यों फिर लोग

हमे ही झुकाते हैं -नोचते हैं

वैमनस्य --मारते हैं पत्थर

कैसा संसार ??

और वो बिन बौर-आये

बिना फले -फूले

ना जाने कैसे -सब से

पाता दया है

रहमो करम पे

जिए चला जाता है

पाता दुलार !!

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माँ ने मन जांचा -आँका

पढ़ा मेरे चेहरे को -भांपा

नम आँखों से -सावन की बदली ने

आंचल से ढाका

फली हुयी डाली ही

सब ताकते हैं

उस पर ही प्यारे -सब

नजर -गडाते हैं

लटकते हैं -झुकाते हैं

पत्थर भी मारते हैं

अनचाहे -व्याकुल हो

तोड़ भी डालते हैं

रोते हैं -कोसते हैं

बहुत पछताते हैं

नहीं कोई वैमनस्य

ना कोई राग है

अन्तः में छुपा प्यारे

ढेर सारा

उसके प्रति प्यार हैं

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मन मेरा जाग गया

अहम कहीं भाग गया

टूटा-खड़ा हुआ मै

फिर से बौर-आया

हरा भरा फूल-फूल

सब को ललचाया

फिर वही नोंच खोंच

पत्थर की मार !

हंस- हंस -मुस्काता हूँ

पाता दुलार !

वासन्ती झोंको से

पिटता-पिटाता मै

झूले में झूल-झूल

बड़ा दुलराता हूँ

हंसता ही जाता हूँ

करता दुलार !!

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शुक्ल भ्रमर

कुल्लू यच पी

MAA SAB MANGAL KAREN