AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Sunday 31 July 2011

परफार्मेंश अप्रेजल आया - भ्रष्टाचार को और बढाया

परफार्मेंश अप्रेजल आया -

भ्रष्टाचार को और बढाया

सरकारी कुछ चीज अलग थी

मस्ती सब के जाती छाती

एक बार घुस गये अगर तो

कौन निकाले किसकी छाती

फ़ाइल का है वजन बहुत ही

टेबल बैठी बस हैं सोती

विधवा पेंशन लगवाने को

बहा हुआ घर बनवाने को

बड़ी तपस्या करनी पड़ती

पाँव दबाओ -बाबू साहेब कह कर उनका

घर उनके कुछ दान दक्षिणा

टी.व्ही.फ्रिज ही ले जा दे दो

चन्दन लगा यहाँ जो बैठे

उनसे भी कुछ जा के निपटो

पहिया तब फाईल को लगती

लंगड़े सी वो चले रगडती

अगर कहीं सच्चा मिल जाता

कल सीमा या जंगल जाता !!

III

प्राइवेट में कम नखरे ना

नया नियम कानून धरा है

चमचागीरी -लूटो-बाँटो

बॉस के अपने तलवे चाटो

फुलवारी जा उनकी देखो

गेंहू चावल कुछ लदवा दो

काम करो चाहे सो जाओ

हाँ में हाँ तुम चलो मिलाओ

तभी प्रशंसा पत्र हाथ में

साल में दो परमोशन पाओ

या छोड़ कंपनी दस दिन घूमे

लौट के आओ

कौवा से तुम हंस बने

गधे से घोडा -दौड़ दिखाओ

चलने दो उनकी मनमानी

मुह खोलो ना कर नादानी

अगर चले विपरीत कहीं भी

तेरी फसल पे पत्थर पानी

परफार्मेंस अप्रेजल आया

भ्रष्टाचार को और बढाया

जिसने बंदी हमें बनाया

अब लगाम उन के हाथो में

चाहे रथ वे जैसे हांके

बड़ी गुलामी -

सुबह शाम कब ??

बच्चे -बूढ़े हों ??

लगे रहो बस निकले दम

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

१६.०४.2011

Thursday 28 July 2011

उनकी ये जुल्फ- घनेरे बादल हैं

उनकी ये जुल्फ- घनेरे बादल हैं

World's Longest Hair (3)

हाथी की सूंड बने

कभी तूफ़ान – कहर ढाते हैं


उनकी मुस्कान – दांत है चपला

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बज्र सी चीर – कभी

दिल को —–चली जाती है


उनकी ये चाल हिरनी सी

बड़ी पापिन है

पीछे खींचे ये -खरगोश के जैसी

शेर के मुंह में -

बड़े प्यार से ——-ले जाती है



(फोटो साभार वर्ल्ड्स लांगेस्ट हेयर और /गूगल/नेट से लिया गया )


शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी २८.७.११ – ८.20 -पूर्वाह्न

Tuesday 26 July 2011

सूखी कड़ाही में जलती पूड़ी

सावन का महीना
हरियाली – कजरी
कारे बदरा उमड़ -घुमड़ डराए
images.jpg-black cloud









खुरपी -पलरी लिए घास की
अम्मा दौड़ी आई द्वारे
दामाद -बेटी के अचानक
घर आने की खबर सुन
थी सकपकाई
आस पास दौड़
सुब कुछ जुटाई
चूल्हे के पास धुएं में
बैठ बिटिया अम्मा संग
आंसू पोंछ -पोंछ
जी भर के बतियाई
पूड़ी कढ़ी
दामाद आया
कोहनी से मार- रूपा को
“उसने” -खूब उकसाया
“कुछ” कहने को
हलक में अटके शब्द
रूपा को गूंगा बनाये
फिर बिदाई
एक बंधन में बंधी गाय
चले जैसे संग -
किसी कसाई
गले लिपटी रोये
आंसू से ज्यों सारी यादें
धोती लगे – नीर इतना -
ज्यों बाढ़ सब कुछ
बहा ले जाए
अम्मा की मैली पुरानी साड़ी
सूखी कड़ाही में जलती पूड़ी
ज्यों सूखे सर में फंसा कमल
छटपटाना
घर का गिरता -छज्जा -कोना
देखती –चली —गयी ……
और कल सुबह
खबर आ पहुंची
स्टोव फट गया
images.jpg-flame
अरी ! बुधिया करमजली
रूपा ..तेरी बिटिया
तो जल गयी ………
burning-fire-flames-woman

(सभी फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया )
———————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
जल पी बी २७.०७.२०११ ५.४५ पूर्वाह्न

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Wednesday 20 July 2011

काहे खून तेरा प्यारे अब खौलता नहीं ---??

तोड़ लिया कोई फूल तुम्हारा

खाली हो गयी क्यारी
उजड़ जा रहा चमन ये सारा
गुल गुलशन ये जान से प्यारी
खुश्बू तेरे मन जो बसती
मिटी जा रही सारी
पत्थर क्यों बन जाता मानव
देख देख के दृश्य ये सारे
खींच रहा जब -कोई साड़ी
cheer-haran_6412

काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??

(फोटो साभार गूगल देवता /नेट से लिया गया )
————————–

साँप हमारे घर में घुसते
अंधियारे क्यों भटक रहा
जिस बिल से ये चले आ रहे
दूध अभी भी चढ़ा रहा ?
तू माहिर है बच भी सकता
भोला तो अब भी भोला है
दोस्त बनाये घूम रहा
उनसे अब भी प्यार जो इतना
बिल के बाहर आग लगा
बिल में ही रह जाएँ !
काट न खाएं !
इन भोलों को !!
लाठी क्यों ना उठा रहा ??
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
————————
तोड़-तोड़ के पत्थर दिन भर
बहा पसीना लाता
धुएं में आँखें नीर बहाए
आधा पका – बनाता
बच्चों को ही पहले देने
पत्तल जभी सजाता
मंडराते कुछ गिद्ध -बाज है
छीन झपट ले जाते
कल के सपने देख देख के
चुप क्यों तू रह जाता
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
—————————

शुक्ल भ्रमर ५
२०.०७.२०११ जल पी बी
८.५५ पूर्वाह्न

Friday 15 July 2011

"दो रोटी" के खातिर अब तो "तिलक लगा" घर वाले भेजें


उनको हमने दिया "सुदर्शन"

"भ्रमर " कहें रखवाली लाये !

कौन जानता -सभी शिखंडी

नाच-गान ही मन को भाए !!

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मन छोटा कर घर से अब तो

"जान हथेली" ले निकले !

"दो रोटी" के खातिर अब तो

"तिलक लगा" घर वाले भेजें

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छद्म युद्ध है- नहीं सामने

योद्द्धा ना - कोई शर्तें !

"कायर" ही अब भरे हुए हैं

पीठ में ही छूरा घोंपें !!

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ह्रदय काँपता अब संध्या में

दिया जले या बुझ जाए !

"रोज-रोज आंधी" आती है

जो उजाड़ सब कुछ जाए !!

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"ढुलमुल नीति " से भंवर फंसे हैं

दो कश्ती पर पाँव रखे !

एक किनारे पर जाने को

साहस -नहीं -ना-दम भरते !!

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चिथड़े पड़े "खून" बिखरा है

"ह्रदय विदीर्ण" हुआ देखे !

आँखें नम हैं धरती भीगी

"जिन्दा लाश" बने बैठे !!

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अर्धनग्न -महफ़िल में मंत्री

शर्म -हया सब बेंच खोंच के !

हो मदान्ध- हैं बौराए ये

इस पीड़ा- क्षण -जा बैठे !!

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हंसी -ठिठोली -सुरा- सुन्दरी

जुआ -दांव में बल आजमायें

ये क्या जानें - पीर परायी

निज ना मरा -दर्द क्या होए !!

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ना जाने क्यों पाले कुत्ते

बोटी नोचे - देख रहे

ये राक्षस हैं - पापी ये

"धर्मराज" बन कर बैठे !!

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जो तुम "तौल नहीं सकते सम"

गद्दी से - मूरख - उठ- जाओ !

"हाथ" में अब भी कुछ ताकत तो

"उसको" तुम फ़ौरन लटकाओ !!

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भ्रमर ५

१५.७.२०११ जल पी बी १० मध्याह्न

Sunday 10 July 2011

सच तो शिव है -शिव ही करता नाग सरीखा संग-संग रहता

सच एक हंस है

पानी दूध को अलग किये ये

मोती खाता -मान-सरोवर डटा हुआ है

धवल चाँद है

अंधियारे को दूर भगाता

घोर अमावस -अंधियारे में

महिमा अपनी रहे बताता

ये तो भाई पूर्ण पड़ा है !

----------------------------

सच-सूरज है अडिग टिका है

लाख कुहासा या अँधियारा

चीर फाड़ हर बाधाओं को

रोशन करने जग आ जाता

प्राण फूंक हर जड़-जंगम में

नव सृष्टि ये रचता जाता

सुबह सवेरे पूजा जाता !!

------------------------

सच- आत्मा है - परमात्मा है

कभी मिटे ना लाख मिटाए

चाहे आंधी तूफाँ आये

चले सुनामी सभी बहाए

दर्द कहीं है लाश बिछी है

भूखा कोई रोता जाये

कहीं लूट है - घर भरते कुछ

सच - दर्पण है सभी दिखाए !!

--------------------------------------

सच तो शिव है -शिव ही करता

नाग सरीखा संग-संग रहता

जिसके पास ये आभूषण हैं

ब्रह्म -अस्त्र ये- ताकत उसमे

पापी उसके पास न आयें

राहू-केतु से झूठे राक्षस

झूठें ही बस दौड़ डराएँ

खाने धाये !!

--------------------------------

सच इक आग है - शोला है ये

धधक रहा है चमक रहा है

उद्भव -पूजा हवन यज्ञं में

आहुति को ये गले लगाये

प्राणों को महकाता जाए

श्री गणेश -पावन कर जाये

भीषण ज्वाला - कभी नहीं जो बुझने वाला

लंका को ये जला जला कर

झूठी सत्ता- झूठ- जलाकर

अहम् का पुतला दहन किये है

सब कुछ भस्म राख कर देता

गंगा को सब किये समर्पित

मूड़ मुड़ाये सन्यासी सा

बिना सहारा-डटा खड़ा है !!

--------------------------------

सच ये कोई नदी नहीं है

जब चाहो तुम बाँध बना लो

ये अथाह है- सागर- है ये

गोता ला बस मोती ढूंढो

-------------------------------

सच ये भाई ना घर तेरा

जाति नहीं- ना धर्म है तेरा

जब चाहो भाई से लड़ -लड़

ऊँची तुम दीवार बना लो

---------------------------

सच पंछी है मुक्त फिरे है

आसमान में -वन में -सर में

एकाकी -निर्जन-जीवन में

सच की महिमा के गुण गाये

कलरव करते विचरे जाए !!

-----------------------------------

सच कोमल है फूल सरीखा

रंग बिरंगा हमें लुभाए

चुभते कांटे दर्द सहे पर

हँसता और हंसाता जाये

जीवन को महकाता जाये

अमर बनाये !!

-----------------------------

सच कठोर है -ये मूरति है

सच्चाई का दामन थामे

पूजे मन से जो -सुख जाने

यही शिला है यही हथौड़ा

मार-मार मूरति गढ़ता है

सुन्दर सच को आँक आँक कर

सच्चाई सब हमें दिखाता

आँखें फिर भी देख न पायें

या बदहवास जो सब झूंठलायें

ये पहाड़ फिर गिर कर भाई

चूर चूर सब कुछ कर जाए !!

----------------------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

७.७.२०११ ६.२६ पूर्वाह्न जल पी बी

Saturday 9 July 2011

सच तो शिव है -शिव ही करता नाग सरीखा संग-संग रहता

सच एक हंस है

पानी दूध को अलग किये ये

मोती खाता -मान-सरोवर डटा हुआ है

धवल चाँद है

अंधियारे को दूर भगाता

घोर अमावस -अंधियारे में

महिमा अपनी रहे बताता

ये तो भाई पूर्ण पड़ा है !

----------------------------

सच-सूरज है अडिग टिका है

लाख कुहासा या अँधियारा

चीर फाड़ हर बाधाओं को

रोशन करने जग आ जाता

प्राण फूंक हर जड़-जंगम में

नव सृष्टि ये रचता जाता

सुबह सवेरे पूजा जाता !!

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सच- आत्मा है - परमात्मा है

कभी मिटे ना लाख मिटाए

चाहे आंधी तूफाँ आये

चले सुनामी सभी बहाए

दर्द कहीं है लाश बिछी है

भूखा कोई रोता जाये

कहीं लूट है - घर भरते कुछ

सच - दर्पण है सभी दिखाए !!

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सच तो शिव है -शिव ही करता

नाग सरीखा संग-संग रहता

जिसके पास ये आभूषण हैं

ब्रह्म -अस्त्र ये- ताकत उसमे

पापी उसके पास न आयें

राहू-केतु से झूठे राक्षस

झूठें ही बस दौड़ डराएँ

खाने धाये !!

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सच इक आग है - शोला है ये

धधक रहा है चमक रहा है

उद्भव -पूजा हवन यज्ञं में

आहुति को ये गले लगाये

प्राणों को महकाता जाए

श्री गणेश -पावन कर जाये

भीषण ज्वाला - कभी नहीं जो बुझने वाला

लंका को ये जला जला कर

झूठी सत्ता- झूठ- जलाकर

अहम् का पुतला दहन किये है

सब कुछ भस्म राख कर देता

गंगा को सब किये समर्पित

मूड़ मुड़ाये सन्यासी सा

बिना सहारा-डटा खड़ा है !!

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सच ये कोई नदी नहीं है

जब चाहो तुम बाँध बना लो

ये अथाह है- सागर- है ये

गोता ला बस मोती ढूंढो

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सच ये भाई ना घर तेरा

जाति नहीं- ना धर्म है तेरा

जब चाहो भाई से लड़ -लड़

ऊँची तुम दीवार बना लो

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सच पंछी है मुक्त फिरे है

आसमान में -वन में -सर में

एकाकी -निर्जन-जीवन में

सच की महिमा के गुण गाये

कलरव करते विचरे जाए !!

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सच कोमल है फूल सरीखा

रंग बिरंगा हमें लुभाए

चुभते कांटे दर्द सहे पर

हँसता और हंसाता जाये

जीवन को महकाता जाये

अमर बनाये !!

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सच कठोर है -ये मूरति है

सच्चाई का दामन थामे

पूजे मन से जो -सुख जाने

यही शिला है यही हथौड़ा

मार-मार मूरति गढ़ता है

सुन्दर सच को आँक आँक कर

सच्चाई सब हमें दिखाता

आँखें फिर भी देख न पायें

या बदहवास जो सब झूंठलायें

ये पहाड़ फिर गिर कर भाई

चूर चूर सब कुछ कर जाए !!

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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

७.७.२०११ ६.२६ पूर्वाह्न जल पी बी