AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Tuesday 28 June 2011

सोचा था एक शेर मै पा-लूं

सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
बचपन से मै प्यार करूँगा
पाल पोष कर बड़ा करूँगा
दूध -हमारा पी कर -पल कर
रीति -नीति मेरी -में घुलकर
एक इशारे में आएगा
चुटकी मेरे बजाते सुनकर
मेरा जिगर वो पढ़ जायेगा
आँख झपकते भाई मेरे
मंशा पूरी कर जायेगा
बड़े जिगर वाला जो होगा
सोचा था एक शेर मै पा-लूं !!
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जोश होश जब अधिक हुआ तो
करतब छल बल सब दिखलाता
कुछ मेरी जब सुनता था वो
मेरे इशारे दौड़ा जाता
उससे भी आगे बढ़ चढ़ कर
मार झपट्टा फिर वो आता
रोक सकूँ -ना-ताकत मुझमे
बड़े जिगर वाला जो था
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
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मुझसे प्यारे उसके आये
आगे पीछे कुछ मंडराए
पेट भरे-गुण दांव पेंच जो
कुछ मैंने थे उसे सिखाये
धार रखे पैना कुछ करते
“पुडिया” उसको कोई खिलाये
सब्ज बाग़ उसको दिखलाये
हमदर्दी हमजोली देखे
शेर मेरा उस ओर खिंचा था
बेबस मै रोता बैठा था
बड़े जिगर वाला वो जो था
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
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सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
खुला छोड़ गलती मैंने की
ना पिजरा ना कुछ बंधन था
अब जो उसको आँख दिखाता
चढ़ बैठे छाती गुर्राता
मुझसे प्यारे उसके आते
खिला -पिला संग भी ले जाते
निशा -निशाचर उसको भाते
दिन में मुझको नजर ना आता
आज हमारे छाती चढ़कर
पंजा गाड़े हैं गुर्राता
बहलाऊँ -फुसलाऊँ सारा प्यार दिखाऊँ
पिल्लै से जो शेर बना था -राज बताऊँ
कुछ ना सुनता ..
पंजा उसका चुभता जाता
मन कहता है मार उसे दूं
या उस पर मै बलि बलि जाऊं ??
भ्रमर कहें ये प्रश्न बड़ा है
उत्तर इसका लेकर आओ
चीख हमारी गले दबी जो
आ सब मिल -कुछ तो -सुलझाओ !!
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा …

शुक्ल भ्रमर ५

Saturday 25 June 2011

बाघ के मुह में खून लग गया !!

मात पिता से सीखी संस्कृति
सीधा सरल सुहाया मुझको !
लाल बहादुर -गाँधी जैसे कितने सारे
खोज -खोज आदर्श बनाया !!
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ईमां -धन -की गठरी बांधे
लिए पोटली निकल पड़ा
जीवन पथ दुर्गम इतना था
चोर उचक्के ठग ही मिलते
माया मोह लालसा दे- दे
दोस्त बनो -या -आ-कह देते
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पोटली उन्हें अगर ये दे दूं
तो भूखे मर जाऊं !
दोस्त अगर इनका बन जाऊं
जीवन सारा – चोर कहाऊँ !!
……………………………………..
मै ईमां- धन लेकर बढ़ता
घायल- रोज -शिकार -हुआ
बाघ चढ़े सब छाती मेरे
lion_zebra
(फोटो साभार गूगल /नेट से )

बाघ के मुह में खून लग गया !!
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अब गुर्राते मुझे डराते
खून चूस लेंगे सारा !
धन्य मनाओ मूरख मेरी
अब तक तुझे नहीं मारा !!
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इक्के दुक्के जो भी अब तो
राह में मेरी आये !
जख्म लिए- चीखें- चिल्लाएं
इनको राम बचाए !!
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बाघ के मुह अब खून लगा है
कौन हाथ डाले जबड़े पे !
पीड़ा सब के दिल अब होती
चाहे भी – तो कौन बचाए !!
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ले मशाल गर साथ बढ़ सको
लाठी डंडे हाथ !
बाघ से भैया बच पाओगे
राम भी देंगे साथ !!
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बाघ की शक्ति बहुत बढ़ गयी
ताल ठोंक चिल्लाये !
इस रस्ते पर जो आएगा
छोडूं ना बिन खाए !!
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सत्य अहिंसा सत्य की डोरी
जो जबड़ा ना बाँधा !
कल को सारा खून पिएगा
अभी है चूसा आधा !!
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भेद भाव में बँट या मूरख
कुछ दिन मौज मनाओ !
चक्की में कल पिस ही जाना
एक अभी हो जाओ !!
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शुक्ल भ्रमर ५

Thursday 23 June 2011

नैन मिल ही गए बात हो जाने दो






जंग जीतेंगे हम आप जो संग हैं -लोकपाल बिल तो बनाना ही है -आइये आज आप का मन कुछ हल्का करें -लीक से हट



नैन मिल ही गए बात हो जाने दो

बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइये –जाइए जाइए
मूर्ति बन मै गया एक झलक के लिए
सर पे बांधे कफ़न एक नजर के लिए
नाग जैसे फंसा एक मणि के लिए
आग जैसे जला उर्वशी के लिए
राख बनने से पहले ही छा जाइये
आंसू छलके ख़ुशी के जो बरसाइये
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए

प्यार दिल में जो पनपा वो कब तक छिपे
लाख बादल ढंके चाँद क्या छिप सके ?
कैद बुल बुल जकड आह मत लीजिये
नैन मूंदे प्रिये आंसू मत पीजिये
फूटती जो कली कितना पर्दा करे
देख उसको जरा तो सकुचाइए
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –

फूल अरमान दिल तेरे स्वागत बिछे ना कुचल जाइये
गूंथ माला प्रिये बिखरे मोती सभी आज चुन लीजिये
साँसे उखड़ी भले प्राण प्रिय में बसा ना दफ़न कीजिये
बाँहे उठ ही गयी मन मचलने लगा पग को बल दीजिये
सूख पथराये ना दिल की सुन लीजिये
सींच उसको सनम ना प्रलय ढाइए – न कुम्हलाइए
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –

जंग जीतेगे हम आप जो संग हैं
द्वार खुल जायेंगे आज जो बंद हैं
काया है एक ही पांच ही तत्व हैं
रक्त ले हम खड़े देख लो एक है
होके मायूस ना हार पहनाइए
दिल को जीतेंगे हम आस मन में लिए
आज मुस्कुराइए –
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

Tuesday 21 June 2011

दर्द देख जब रो मै पड़ता


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बूढ़े जर्जर नतमस्तक हो

इतना बोझा ढोते

साँस समाती नहीं है छाती

खांस खांस गिर पड़ते !

दुत्कारे-कोई- लूट चले है

प्लेटफार्म पर सोते !

नमन तुम्हे हे ताऊ काका

सिर ऊंचा रख- फिर भी जीते !!

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वंजर धरती हरी वो करते

खून -पसीने सींचे !

कहें सुदामा -श्याम कहाँ हैं ?

पाँव विवाई फूटे !

सूखा -अकाल अति वृष्टि कभी तो

आँत ऐंठती बच्चे सोते भूखे !

कर्ज दिए कुछ फंदा डाले

कठपुतली से खेलें !

नमन तुम्हे हे ताऊ काका

पेट -पीठ से बांधे हो भी

पेट हमारा भरते !!

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बैल के जैसे घोडा -गाडी

जेठ दुपहरी खींचे !

जीभ निकाले पड़ा कभी तो

दो पैसे की खातिर कोई

गाली देता पीटे

बदहवास -कुछ-यार मिले तो

चले लुटाये -पी के !!

नमन तुम्हे हे ताऊ काका

दो पैसों से बच्चे तेरे

खाते -पढ़ते-जीते !!

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काले -काले भूत सरीखे

मैले कुचले फटे वस्त्र में

बच्चे-बूढ़े होते !

ईंट का भट्ठा-खान हो चाहे

मिल- गैरेज -में डटे देख लो

दिवस रात बस खटते !

नैन में भर के- ढांक -रहे हैं

इज्जत अपनी -रही कुंवारी

गिद्ध बाज -जो भिड़ के !

नमन तुम्हे- हे ! - तेज तुम्हारा

कल - दुनिया को जीते !!

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बर्फीली नदियों घाटी में

बुत से बर्फ लदे जो दिखते !

रेगिस्तान का धूल फांक जो

जलते - भुनते - लड़ते !

भूख प्यास जंगल जंगल

जान लुटाते भटकें !

कहीं सुहागन- विरहन -बैठी

विधवा- कहीं है रोती !

होली में गोली संग खेले

माँ का कर्ज चुकाते !

तुम को नमन हे वीर -सिपाही

दर्द देख -- जब रो मै पड़ता

तेरे अपने - कैसे -जीते !!

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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

२२.०६.२०११ जल पी बी

मूर्खता (दूसरों से सीखने में हर्ज ही क्या है )

झलक मिलती है सूरज की

उग उठे बादल करे क्या

भनक मिलती है मूरख की

मुह खुले-आभूषण करे क्या

सोने पर धूल पड़े कितनी पर

सोना ही रह जाता है

घोड़े पर चढ़ ले मुकुट पहन

वो राजा ना बन जाता है

आतिशबाजी सी चकाचौंध बस

दीपक ना बन जाता है

खातिरदारी मुंह दांत दिखे बस

दीमक सा खा जाता है

कुल नाश करे- अधिकार मिला

उन्माद भरे ही विचार करे

भ्रमर कहें वो लुहार भला

घन मार सभी जो सुधार करे

निज रक्त चाट के खुश होवे

लम्पट- मद में धन नाश करे

निज भक्त मान के सब खोये

कंटक पथ में वह वास करे

जब यार चार मिल जाएँ तो

विद्वानों का उपहास करे

सब नीति नियम ही मेरी मानो

फूलों का दो हार हमें

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल

३.०६.२०११ जल पी बी

Sunday 19 June 2011

पुरुष “पिता” - पाले -भर नेह



जीवन रथ के दो पहिये का

बड़ा सुहाना अदभुत मेल

एक अगर जो नहीं मिला तो

बिगड़े जीवन का सब खेल !!

नारी प्यारी माँ अपनी तो


पुरुष पिता- पाले -भर नेह !!


मेहनत कर थक दिन भी आये

पहले शिशु को गले लगाये

चूमे उछले गोदी भर ले

भूख प्यास को रहे भुलाये !!

दृष्टि सदा कोमल शिशु रख वो

न्योछावर हो बलि बलि जाये

भटके खुद काँटों के पथ पर

फूल के पलना उसे झुलाये !!

कोशिश उसकी पल पल जीवन

कोई कमी नहीं रह जाये

उसके अगर अधूरे सपने

देखे खुद को शिशु में अपने

संबल -संसाधन सब ला दे

सपने अपने सच कर जाये !!

शिक्षक है वो रक्षक है वो

पालक भाग्य विधाता है वो

ईश रूप है सब ला देता

भटकी नैया तट ला देता

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नाज हमें भी पूज्य पिता पर

जिसने हमको गुणी बनाया |

अनुशासन में पाला हमको,
निज संस्कृति को हमें सिखाया||

शुद्ध आचरण सु-विचार से

निष्कलंक रहना सिखलाया !!

सत्य अहिंसा दे ईमान धन

ऊँगली थामे खड़ा किया !

रोज -रोज सींचे पौधे से

मुझको इतना बड़ा किया !!

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अभिलाषा है प्रभु बस इतनी

मुन्ना”- उनका बना रहूँ !

वरद हस्त सिर पर हो उनका

चरण में उनके पड़ा रहूँ !!

उनकी कभी अवज्ञा न हो

आज्ञाकारी बना रहूँ !!

पिता और संतान का रिश्ता

पावन प्रतिदिन हो जाए

नहीं अभागा कोई जग में

पिता से वंचित हो जाये

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पिता की महिमा जग जाहिर है

शोभे उपमा जहाँ लगा दो !

परम पिता परमेश्वर जग के

राष्ट्र पिता चाहे तुम कह लो !!

बूढ़े पीड़ित भटक रहे जो

पिता समान अगर तुम कह दो

लो आशीष दुआ तुम जी भर

जीवन अपना धन्य बना लो !!

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शुक्ल भ्रमर५

१९.६.२०११ जल पी बी

Friday 17 June 2011

और फिर हम मारे मारे भटकने लगे-हमारी सरकार पर पूरा भरोसा है

सूरज निकला दिन चढ़ आया

और फिर हम मारे मारे भटकने लगे

विकासशील देश है हमारा

यहाँ सब कुछ न्यारा न्यारा

कोई चाहे लोक पाल

कोई बना दे जोक पाल

हम स्वतंत्र हैं

चुनी हुयी सरकार है हमारी

स्वतंत्र

दुनिया से हमें क्या ---

दुनिया को हमसे क्या ??










मेरी अलग ही दुनिया है

उधर शून्य में सब हैं मेरे

प्यारे बे इन्तहा प्यार करने वाले -

मुझसे लड़ने वाले -

मेरा घर परिवार

एक अनोखा संसार

नहीं यहाँ कोई हमारा परिवार

न हमारी कोई सरकार !!















मुझसे अभी दुनिया से क्या लेना देना मेरी अम्मी है न

-मै तो यूं ही झूला झूलता सोता रहूँगा

-अभी तो हाथ भी नहीं फैलाऊंगा

हमारी सरकार पर हमें पूरा भरोसा है

मेरी माँ जब बच्ची थी

वो भी यही कहती थी

मै भी बड़ा हो रहा हूँ

आँख खोलने को मन नहीं करता

कौन कहता है भुखमरी फैलाती है

गोदामों में अन्न जलाती और सड़ाती है

हमारी सरकार….. ???


शुक्ल भ्रमर ५


१७.६.11



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday 15 June 2011

बंधुआ हूँ मै -मुक्त कहाँ हूँ -??

बंधुआ हूँ मै -मुक्त कहाँ हूँ -??

गर्भ में था तो हाथ बंधे थे

जकड़ा था मै जैसे कैदी !

सीखा वही जो माँ करती थी

खांस खांस जो कुढ़ मरती थी

बर्तन धोना झाड़ू पोंछा

बीस -बीस ईंटो का बोझा

धंसा हुआ मै चार किलो का

पेट में -रोटी का ना टुकड़ा

दर्द टीस का नाच घिनौना

पत्थर पर जो चला हथोडा

कहीं खान में कोयले जैसी

गोरी चमड़ी रंग बदलती

धूप में तपता चाँदी सोना

मोती ढुरता आँख का कोना !!

कैसा सपना -इच्छा पूरी ??

उमर भी अपनी सदा अधूरी

अहो भाग्य ! आया जो धरती

सुन्दर कर्म थे माँ की करनी !!

क्या है दूध -व् चाँद खिलौना ?

क्या कपडे - बस नंगे सोना

बाग़ बस-अड्डा रेल स्टेशन

मरू भूमि का सूखा कोना !

नागफनी हैं -कांटे देखा

देख लिया हर जादू टोना !!

दर्जन भर भाई बहना पर

क्रूर निगाहों का उत्पीडन !

चोर सा कोई पुस्तक झाँकू

क-ख-ग सब कृष्ण पहर !!

काली रात का काला साया

बाप नशेड़ी -जग भरमाया !

दो पैसे के लालच भाई

बंधुआ सब ने मुझे बनाया !!

चौदह में ही चौंसठ जी कर

कभी कमाया कभी खिलाया !

कन्यादान भी करना मुझको

चौरासी मानव तन पाया !!

रब्ब खुदा या मालिक है क्या ??

मालिक मेरा होटल वाला

गैरेज वाला -फैक्ट्री वाला

कहीं भिखारी -पैसे वाला !!

दो रोटी संग चाबुक देकर

खाल उधेड़ सभी करवाता !!

मन करता है आग लगा दूं

धर्म शाश्त्र को धता बता दूं

सब झूठे -कानून-जला दूं

जो अंधे हैं देख न पाते

बंधुआ -बंधन होता क्या है ??

बंधुआ हूँ मै कहाँ नहीं हूँ ???

तलवे उनके चाट रहा हूँ

आगे पीछे नाच रहा हूँ

अब भी मेरे हाथ बंधे हैं

नाग पाश में हम जकड़े हैं !!

मूक -सहूँ मै-भाव नहीं हैं

हड्डी है बस -चाम नहीं है

गूंगे बहरे -वो -भी तो हैं

जिह्वा शब्द है- जान नहीं है

आह चीख- पर -कान नहीं है

जेब ठूंसकर -ले जाते वो

लाज नहीं अभिमान नहीं है

जिनका कुछ सम्मान नहीं है !!

बंधुआ हूँ मै मुक्त कहाँ हूँ ???

गर्भ में थे तो हम जकड़े थे

नाग पाश अब भी जकड़े हैं

चौरासी मानव तन पाया

कठपुतली बन बस रह पाया

बंधुआ हूँ मै कहाँ नहीं हूँ ??

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

१५.०६.२०११